लिखने में मेरी कलम जरा ठहर सी जाती है क्योंकि भारत के 74वें गणतंत्र दिवस पर लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ पर लिखने हेतु कलम उठाई है। कलमकारों पर चिंतन हेतु कलम उठाना वाकई जिम्मेदारी का काम है लेकिन देश का जिम्मेदार नागरिक और एक सम्पादक होने के नाते आज मेरे लिये यह लिखना आवश्यक हो गया कि देश निर्माण में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के पश्चात जो महती भूमिका रही है वह पत्रकारों की ही है लेकिन स्वतंत्रता 1 व इसके पश्चात भारत गणराज्य बनने से अब तक की स्थिति बहुत भिन्न हो गई है। शुचिता, अस्मिता, सिद्धांत और सम्मान के जो भाव कुछ वर्ष पूर्व पत्रकारिता जगत में बरसों से चले आ रहे थे आज उनका अनुपालन करने वाले चंद पत्रकार ही रह गये है। सभी पत्रकार मेरे भाई है परंतु वास्तविकता में पत्रकारिता को व्यवसाय की अपेक्षा राष्ट्र सुधार का माध्यम मानकर पत्रकारिता करने वाले लोग अंगुलियों पर गिनने लायक ही बचे है। जबकि कई कलमकार इसे व्यवसायिकता को चोला ओढ़ाकर इसे धनसाधना का स्त्रोत समझने लगे हैं। भौतिकवाद के इस युग में स्वयं के परिवार संचालन एवं समाचार पत्र रूपी पत्रकार परिवार के संचालन हेतु थोड़ी व्यवसायिकता समय की जरूरत है परन्तु इसके साथ आवश्यकता है कि इसकी गरिमा, शुचिता अस्मिता व सिद्धांतों को बनाये रखने की जिससे पत्रकारिता और व्यवसायिकता में अपेक्षित संतुलन बना रहे। पत्रकारिता के माध्यम से समीक्षा उचित है परंतु इसको धन एकत्रीकरण या भय कारित करने का माध्यम बनाया जाना निश्चित ही देश, समाज व मनुष्य को गर्त में ले जाने वाला कदम बन सकता है। समय आ गया है कि जब पत्रकार जगत के पुरोधा मातहत पत्रकारों का इस दिशा में मार्गदर्शन एवं अपने अनुभव का लाभ प्रदान कर राष्ट्रडितो के अभिनिथन की इबारत लिखकर इसकी विश्वसनीयता की शिखर पर पहुचान में योगदान दे।

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