नगर के सार्वजनिक शौचालय, मूत्रालय दुर्दशा के शिकार अवार्ड लौटाकर नैतिकता का परिचय दें अधिकारी

संवाददाता, नगर पालिक निगम उज्जैन एवं जिला प्रशासन के प्रशासनिक मुखिया बीते समय में स्वच्छता के नाम पर कई अवार्ड हासिल कर चुके है जो कि थोथी वाहवाही लूटने से ज्यादा और कुछ नहीं है। नगर के सुलभ काम्प्लेक्स सहित विभिन्न सार्वजनिक शौचालयों, मूत्रालयों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। उखड़ती टाईल्स, दरकती दीवारों, टूट चुके नलों और तो और कई स्थानों पर नलविहीन, टंकीविहीन शौचालयों, मूत्रालयों को देखकर ऐसा लगता है कि यह उज्जैन संभागीय मुख्यालय के नहीं अपितु किसी करने के शौचालय, मूत्रालय है। विचारणीय विषय है कि स्वच्छता के क्षेत्र में अनेकानेक बिंदुओं पर नगर पालिक निगम उज्जैन, जिला प्रशासन पूरी तरह नाकाम है। इसके बावजूद कागजों पर ही इन बिंदुओं की प्रतिपूतियां और औपचारिकता कर सिर्फ और सिर्फ स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर करोड़ों रूपये की चोट शासन को पहुंचाई जा रही है लेकिन नतीजा सिफर है। नगर निगम के अधिकारियों को कॉल करने पर वे कॉल अटेंड नहीं करते। उनकी मनमानी चरम पर है। नगर निगम के स्वच्छता अभियान के नोडल अधिकारी मैदानी तौर पर नदारद है। ये तथ्य स्वयं निगमायुक्त विगत दिनों अपने दौरे में स्वीकार कर चुके है। आखिर ऐसे अधिकारियों की अकर्मण्यता, गैर मौजूदगी लापरवाही के चलते नगर स्वच्छता में सिरमौर कैसे बन सकेगा। इससे ज्यादा दुःख का विषय है कि जिले के प्रशासनिक मुखिया अवार्ड ले रहे है लेकिन जिस कार्य के बूते अवार्ड मिला है उसके वास्तविक हालात कुछ और ही है। बिना काम किये फर्जी उपलब्धियों के आधार पर अवार्ड लेने के लिये उज्जैन के प्रशासनिक अधिकारियों का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में सम्मिलित किया जाना चाहिए। ऐसा लगता है कि अवार्ड लेने की ललक, लालसा और चाह में प्रशासनिक अधिकारी नैतिकता ही खो बैठे है और सिर्फ अवार्ड की संख्या बढ़ाने की खातिर सच्चाई को नजरअंदाज कर रहे है और गांधारी की तरह इन्होंने सब कुछ जानते हुए भी आंखों पर पट्टी बांध ली है। बांधे भी क्यों नहीं सच्चाई को स्वीकार करने पर इनके शोकेस में अवार्ड कम पड़ जाएंगे लेकिन ईश्वर सब कुछ देख रहा है। प्रशासनिक अधिकारियों को चाहिये कि वे जिस कार्य के भूते अवार्ड प्राप्त कर रहे है उसे मैदानी तौर सही रूप से अमलीजामा पहनाएं या फिर नैतिकता के नाते अवार्ड लौटाकर अपनी नजरों में शेष बचे आत्मसम्मान को बचाने की पहल करें।

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