अवंतिका के युवराज संपादक रोशन पंकज
आज सोशल मीडिया के माध्यम से मुझे एक फोटो दिखाई दी, जिसने मेरे दिल को झकझोर दिया। उस फोटो में रेलवे ट्रैक पर बैठा एक छोटा सा बच्चा था, जिसकी उम्र महज पांच साल है। वह अपनी मजबूरियों से भागकर अपनी शाम की दो रोटी का गुजारा करता है, लेकिन किसी का ध्यान नहीं जाता उस पर। यह दृश्य देखकर मन कितना दुखी हो जाता है!
मेरी भरी आंखों से आज मैंने यह लेख लिखने का फैसला किया, क्योंकि मैं इस दृश्य को देखकर चुप नहीं बैठ सकता। क्या हमारा समाज इतना असंवेदनशील हो गया है कि हम एक छोटे से बच्चे की मदद करने के लिए आगे नहीं आते? क्या हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम उस बच्चे की जरूरतों को पूरा कर सकें?
यह बच्चा न तो किसी का मोहताज है, न ही किसी का बोझ। वह सिर्फ अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ रहा है, और हमें उसकी मदद करनी चाहिए। हमें उसके लिए खड़े होना चाहिए और उसकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए।
आइये, हम इस बच्चे की मदद करें और उसकी जिंदगी को बेहतर बनाएं। आइये, हम अपने समाज को एक बेहतर जगह बनाएं, जहां हर कोई अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ सके।