क्या सादगी और सख्ती के मिश्रण से नगर विकास करने वाले पूर्व महापौर मदनलाल की लावत की तर्ज पर चल सकेंगे मुकेश टटवाल

संपादक वैसे तो भविष्य की घटनाओं का सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता और न ही उनका सटीक आंकलन किया जा सकता है। परंतु ऐसा अवश्य प्रतीत होता है कि पूर्व महापौर मदनलाल ललावत ने जिस सादगी और सख्ती के मिश्रण से भरी अपनी कार्यप्रणाली से नगर का विकास किया था उस तर्ज पर न तो पूर्व महापौर श्रीमती मीना जोनवाल चल सकी है और न ही वर्तमान महापौर मुकेश टटवाल इसका लेशमात्र भी अनुकरण कर पा रहे है।

मदन पहलवान महापौर थे तब भी साईकिल से घूमते थे और आज भी साईकिल ही उनकी सवारी है लेकिन दोपहिया वाहनों से घूमने वाली पूर्व महापौर श्रीमती मीना जोनवाल आज करोड़ों के बंगले की मालकिन बनकर चौपहिया वाहनों में सवारी कर रही है महापौर बनने के पश्चात उनकी सम्पत्ति में तेजी से उछाल आया है। वैसे तो भाजपा के रक्त में ही विकास का कण-कण समाया है परंतु स्वविकास की अपेक्षा श्रीमती मीना जोनवाल नगर विकास भी करती तो कितना अच्छा होगा।

अब बात की जाए वर्तमान महापौर मुकेश टटवाल की। वे सिंघम स्टाईल में आये दिन नगर निगम के उपविभागों, झोन कार्यालयों के दौरे कर जनसंपर्क के माध्यम से सतत समाचार जारी कर रहे है परंतु इनके ठोस परिणाम आज तक सामने नहीं आ सके है जो सख्त मिजाज पहचान मदन पहलवान की अधिकारियों में थी वो मुकेश टटबाल की नहीं है और न ही मैदानी तौर पर मुकेश टटवाल सक्रिय हो रहे है वे तो सिर्फ चंद लोगों की बात सुनकर अपने कार्य कर रहे है स्वविवेक से कार्य लेकर वे वास्तविकता. तक पहुंचेंगे तो नगर निगम को नरक निगम बनाने वाले चेहरों की पहचान हो सकेगी कि ईओडब्लयू लोकायुक्त व पुलिस में अनेकानेक आपराधिक प्रकरणों से नगर निगम उज्जैन की साख मिटाने वाले दागी व दोषी अधिकारियों को यहां से हटाया जाना चाहिए।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार महापौर मुकेश टटवाल बीते माह नलिया बाखल क्षेत्र में अपने एक चहेते भाजपा कार्यकर्ता रूपी चाटुकार (जो कि पहले पूर्व सांसद के चाटुकार कर रहे हैं) के अवैध निर्माण को बचाने तथा एक अल्पसंख्यक वर्ग की महिला के वैध निर्माण को तुड़वाने के लिये मौके पर टीम लेकर पहुंच गये थे जबकि नगर के प्रथम नागरिक को ऐसा कृत्य शोभा नहीं देता और यह कार्य महापौर का नहीं अपितु नगर निगम की टीम का है। जब निगम के मुखिया ही इस तरह का दोयम दर्जे का आचरण करेंगे तो नगर निगम के मातहतों से सुधार की उम्मीद कैसे की जा सकती है। आश्चर्य का विषय है कि प्रथम नागरिक की इस प्रताड़ना के कारण अल्पसंख्यक दम्पत्ति को न्यायालय की शरण तक लेना पड़ी है। बुलडोजर अपराधियों के घरों पर चलना चाहिए यह उचित है परंतु निर्दोषों के घर नहीं है।

महापौरजी अब भी समय है जाग जाईये और चाटुकारों के चंगुल से बाहर आईये और मदन पहलवान के कार्यकाल से प्रेरणा लीजिये और उनके अनुभव का लाभ उठाईये वरना आपके कार्यकाल पर भ्रष्टाचार का बदनुमा दाग लगाकर ये आपको भी पूर्व महापौर की पंक्ति में सजा देंगे।

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