संपादकीय
जबलपुर में सामने आया हनी ट्रैप का यह सनसनीखेज मामला केवल एक सामान्य आपराधिक षड्यंत्र नहीं है, बल्कि यह हमारी न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था के सामने खड़ी एक विकट चुनौती को उजागर करता है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए पवित्र कानूनों को शातिर अपराधी एक खतरनाक ‘कानूनी ढाल’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे न केवल निर्दोष नागरिकों की जिंदगी खतरे में पड़ रही है, बल्कि पुलिस प्रशासन की विश्वसनीयता भी दाँव पर लगी है।
इस पूरे प्रकरण की सबसे गंभीर परत पुलिसकर्मियों की संलिप्तता है। जहां एक आम नागरिक को अपनी शिकायत दर्ज कराने या मदद के लिए घंटों संघर्ष करना पड़ता है, वहीं ब्लैकमेलर गैंग के एक फोन पर दो आरक्षकों का पांच मिनट के भीतर घटनास्थल पर पहुंच जाना, कानून के रखवालों और अपराधियों के बीच एक भयावह गहन तालमेल की ओर स्पष्ट इशारा करता है। आरक्षकों ने न केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों को सूचित करने के नियम का उल्लंघन किया, बल्कि मौके पर पहुंचकर उन्होंने न्याय के पक्ष में खड़े होने के बजाय, पीड़ितों को सीधे जेल भेजने की धमकी देकर अपराधियों के सहयोगी की भूमिका निभाई। यह कृत्य सीधे-सादे लोगों के मन में पुलिस के प्रति भय और अविश्वास पैदा करता है। जब कानून का रक्षक ही भक्षक की तरह व्यवहार करने लगे, तो आम नागरिक न्याय के लिए किसके पास जाए?
ब्लैकमेलिंग के इस पैटर्न में सबसे घातक हथियार है ‘रेप केस’ दर्ज कराने की धमकी। आपराधिक गैंग को पता है कि भारतीय कानून महिला अपराधों के मामले में त्वरित और सख्त कार्रवाई करता है, और इसी संवेदनशीलता का दुरुपयोग वे निर्दोष युवकों को मानसिक रूप से तोड़ने के लिए करते हैं। यह प्रवृत्ति न्याय प्रणाली को एक दोधारी तलवार बना देती है। एक ओर, यह वास्तविक महिला पीड़ितों को त्वरित न्याय सुनिश्चित करती है; दूसरी ओर, जब इसका दुरुपयोग ब्लैकमेलिंग के लिए होता है, तो यह निर्दोष लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा, मानसिक स्वास्थ्य और यहाँ तक कि जीवन लीला समाप्त करने का कारण बन जाती है।
इस घटना का दूरगामी सामाजिक असर भी बेहद चिंतनीय है। जब इस तरह के मामले बार-बार सामने आते हैं, तो यह समाज के एक बड़े वर्ग में महिलाओं की वास्तविक शिकायतों पर भी संदेह और अविश्वास पैदा कर सकता है। इससे उन सच्ची महिला पीड़ितों को न्याय दिलाना और कठिन हो जाएगा, जो वास्तव में यौन हिंसा या उत्पीड़न का शिकार हुई हैं।
यह समय है कि पुलिस प्रशासन इस मामले को केवल व्यक्तिगत कदाचार मानकर हल्के में न ले। पुलिस बल के भीतर सख्त आंतरिक जांच होनी चाहिए। दोनों आरक्षकों को लाइन अटैच करना केवल पहला कदम है; यदि वे दोषी पाए जाते हैं तो उन पर त्वरित निलंबन और कठोर आपराधिक कार्रवाई अनिवार्य है ताकि पुलिस बल में एक स्पष्ट संदेश जाए कि भ्रष्टाचार और अपराधीकरण कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, पुलिस अधिकारियों को कानून के दुरुपयोग के संभावित मामलों को पहचानने और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है।
अंत में, यह मामला कानून की शक्ति के दुरुपयोग का एक कड़वा आईना है। न्याय और सुरक्षा के प्रावधानों को आपराधिक उद्देश्यों के लिए अपहरण करने वाले तत्वों पर कठोरतम प्रहार करना ही स्वस्थ समाज की नींव हो सकता है। कानून के दुरुपयोग को रोकने और भ्रष्ट तत्वों को दंडित करने की जिम्मेदारी पूरी प्रशासनिक ईमानदारी के साथ निभाई जानी चाहिए, तभी आम नागरिक का विश्वास कानून व्यवस्था में बहाल हो सकेगा।









