कुम्भपर्व पर ज्योतिष शास्त्रीय मीमांसा
अश्वमेध सहस्त्राणि वाजपेय शतानि च ।
लक्ष प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ।।
एक बार अश्वमेघ यज्ञ करने से, सौ बार वाजपेय यज्ञ करने से एवं १ लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल केवल कुम्भ पर्व में स्नान करने से मिलता है।
हमारे धर्म शास्त्रों में अष्टमी, प्रतिपद्, अमावस्या, पूर्णिमा और संक्रान्ति तिथियों की पर्व संज्ञा दी गई है। इसी आधार पर संक्रान्तियों से हिसाब के कुम्भों का भी निर्णय किया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि राजा हर्षवर्धन के समय धर्म प्रचार के लिए लोगों को एकत्र किया जाता था। किसी भी प्रसिद्ध नदी अथवा प्रसिद्ध स्थान पर लोगों का जमघट लगता था और वहाँ धार्मिक चिन्तन किया जाता था । बाद में जिन-जिन स्थानों पर विशेष भीड़ (संख्या) देखी गई उन स्थानों पर कुम्भपर्व लगने लगा। हमारे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बृहस्पति मध्यम मान से १ राशि पर १ साल रहता है। इसलिए पुनः गुरु जब उसी राशि पर लगभग १२ वर्षों के बाद आता है तो कुम्भ पर्व लगता है। इस बारह के आधे ६ वर्ष के बाद अर्द्धकुम्भ की संज्ञा दी गई है।
गंगाद्वारे प्रयागे च धारा गोदावरी तटे ।
बतुर्कुम्भाख्ययोगोऽयं प्रोच्यते शङ्करादिभिः ।।
अर्थात – हमारे देश में कुम्भ का महापर्व हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन एवं नासिक इन चार तीर्थ स्थानों में प्रत्येक बारह वर्षों के बाद लगता है।
अत् हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन एवं नासिक चार तीर्थ स्थानों में कुम्भ योग होता है। चारों कुम्भ पवीं के दिन और स्थान का समय शास्त्रों में बताया गया है।
हरिद्वार में कुम्भ पर्व भूमिका –
पद्मिनीनायके मेषे कुम्भराशि गते गुरौ ।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुम्भनामा तदोत्तमः ।।
जब मेष राशि पर सूर्य और कुम्भ राशि पर बृहस्पति हो तो गंगाद्वार हरिद्वार में बह्मकुण्ड पर कुम्भपर्व लगता है।
हरिद्वार में कुम्भ पर्व के तीन स्नान है-
(१) शिवरात्रि, (२) चैत्र अमावस्या, (३) प्रधान, स्नान मेष संक्रान्ति को होता है।
प्रयागराज में कुम्भ पर्व-
मेषराशि गते जीवे मकरे चन्द्र-भास्करी ।
अमावस्या तदा योगः कुम्भाख्यस्तीर्थ नायके ।।
जिस समय बृहस्पति मेष राशि पर स्थिति हो और चन्द्रमा सूर्य मकरराशि में हो तो उस समय तीर्थराज प्रयाग में कुम्भपर्व का योग होता है। प्रयाग में कुम्भ के तीन
(१) मकर संक्रान्ति, (२) मौनी अमावस्या, (३) बसन्त पंचमी को किये स्नान जाते है।
उज्जैन में सिंहस्थ महापर्व {कुम्भ} –
मेषराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पती ।
उज्जयिन्यां भवेत कुम्भः सदा मुक्ति प्रदायकः ।।
जिस समय सूर्य मेष राशि पर हो तथा बृहस्पति सिंह राशि पर हो तो उस समय उज्जैन में कुम्भ पर्व होता है। उज्जैन में कुम्भ पर्व के लिए एक स्थान का ही विशेष महत्व है।
नासिक के कुम्भपर्व –
मेषराशि गते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ ।
गोदावाँ भवेत् कुम्भो जायते खलु मुक्तिदः ।।
अर्थात् – जिस समय सूर्य मेष राशि पर तथा सिंह अथवा कर्क राशि में बृहस्पति हो तो उस समय गोदावरी (नासिक) में मुक्ति प्रदायक कुम्भ पर्व का योग होता है।
यहाँ पर भी तीन स्नान कहा गया है। किन्तु मुख्य स्थान भाद्रपद कृष्णपक्ष के अमावस्या को होता है।
हरिद्वार और प्रयाग में पूर्ण कुम्भ एवं अर्द्ध कुम्भ दो-दो महापर्व होते हैं। परन्तु उज्जैन और नासिक में पूर्ण कुम्भ ही होता है।
ज्योतिषाचार्या एवं वास्तु विशेषज्ञ विवेका शर्मा
उज्जैन (मध्य प्रदेश}
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