नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की कार्यशैली की भी अहम भूमिका
पत्रकार मनोज उपाध्याय उज्जैन , स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में उज्जैन से महज 50 किलोमीटर दूर इंदौर शहर लगातार 6 बार नंबर वन का तमगा हासिल करने में कामयाब हुआ है , इंदौर नगर निगम के प्रशासनिक अधिकारियों सहित अपर आयुक्त रहे संदीप सोनी जोकि वर्तमान में महाकालेश्वर मंदिर के प्रशासक एवं उज्जैन विकास प्राधिकरण के सीईओ, ने दिल्ली पहुंचकर स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में इंदौर नंबर वन का छक्का लगाने का अवार्ड लिया, जबकि उज्जैन शहर साल दर साल स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ता जा रहा है आखिर क्या कारण है जिसके चलते स्वच्छता सर्वेक्षण में उज्जैन पिछड़ता जा रहा है ?,जबकि सहभागिता की मुख्य केटेगरी में उज्जैन पहले पायदान पर आया है ,उज्जैन शहरवसियों के जज्बे और सहभागिता ने एक बार फिर राष्ट्रीय पटल पर उज्जैन को गौरवान्वित किया है, इसका पूरा श्रेय उज्जैन की जनता को जाता है जिन्होंने कंधे से कंधा मिलाकर स्वच्छता अभियान को सफल बनाने में निगम का साथ दिया, इसके विपरित स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर आए परिणाम शहर की उम्मीद को ठेंस पहुंचाने वाले हैं,पायदान चढऩा तो दूर हम पीछले साल की स्थिति पर भी खुद को टीकाकर नहीं रख सके, स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 में उज्जैन 17 वें स्थान पर जा फिसला है।
शहर के बुद्धिजीवियों की माने तो उज्जैन शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में पीछे धकेलने के कई कारण हैं लेकिन जिनमें प्रमुख रूप से उज्जैन के आवारा मवेशी, टाटा सीवरेज प्रोजेक्ट के लेटलतीफी एवं गैर जिम्मेदाराना कार्यशैली एवं क्षिप्रा नदी में उज्जैन शहर के गंदे नालों का पानी मिलना बदस्तूर जारी रहना,प्राथमिक रूप से सामने आ रहे हैं।
जी हां आपको जानकर हैरानी होगी कि शहर में हजारों की संख्या में आवारा मवेशी पूरे शहर में विचरण कर रहे हैं जिसमें बताया जाता है कि करीब 25 से 30 हजार आवारा कुत्ते ,लगभग 15 से 20 हजार सूअर और लगभग 5 हजार से अधिक गाय एवं आवारा सांड पूरे शहर में विचरण कर रहे हैं।
पुराने और नए उज्जैन शहर की तकरीबन सभी गलियां एवं कॉलोनियां आवारा कुत्तों से भरी पड़ी है, जिसके कारण से उज्जैन शहर में प्रतिमाह लगभग 1600 से अधिक लोगों को कुत्ते अपना शिकार बनाते हैं,वहीं पुराने शहर उज्जैन में पिपली नाका इंदिरा नगर, बापुनगर, ढांचा भवन ,बेगमपुरा, नानाखेड़ा, जवाहर नगर, महा शक्ति नगर, महानंदा नगर ,वसंत विहार सनराइज सिटी वृंदावन धाम आदि ऐसे क्षेत्र हैं जहां बहुतायत में सुअरों ने कब्जा जमा रखा है, इसके चलते पूरे शहर के इलाके गंदगी से सराबोर है, इसके साथ साथ आवारा मवेशी के रूप में गाय पूरे शहर के मुख्य मार्गों, चौराहों, और कॉलोनियों में पशुपालकों द्वारा आवारा छोड़ी जाती है, जिन्हें पकड़ने की हिम्मत उज्जैन नगर निगम के अधिकारी एवं कर्मचारी नहीं कर पा रहे हैं आवारा मवेशियों को पकड़ने की छुटपुट मुहिम अगर चलती भी है तब ऐसे में बाहुबलियों की सरपरस्ती से लैस पशुपालक अपने पशुओं को नगर निगम के कमजोर हाथों से छुड़ा ले जाते हैं और शहर में आवारा मवेशी फिर से खुलेआम विचरण करते दिखाई देते हैं जिसे देखकर नगर निगम के आला अधिकारी विवश नजर आते हैं, नगर निगम के अधिकारियों की विवशता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पूरी कैबिनेट के साथ उज्जैन शहर में मौजूद रहे, लेकिन पूरे शहर में आवारा मवेशियों के विचरण में कोई परिवर्तन नजर नहीं आया, और अब आने वाले दिनों में देश के प्रधानमंत्री का भी उज्जैन शहर में आगमन है, ऐसे में उज्जैन शहर को आवारा मवेशियों से मुक्त करना नगर निगम आयुक्त के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
दूसरा प्रमुख कारण है उज्जैन शहर में कई वर्षों से चल रहा टाटा कंपनी का सीवरेज पाइप लाइन का प्रोजेक्ट ,जिसके चलते पूरे उज्जैन की सड़कें ध्वस्त हो चुकी है, पिछले 5 साल से अधिक समय से शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट अभी भी बदस्तूर जारी है आशंका यह भी जताई जा रही है कि 200 करोड़ से अधिक के इस प्रोजेक्ट में कुछ तकनीकी खामियों की वजह से शहर के सभी गंदे नालों को क्षिप्रा नदी में मिलने से रोक पाना संभव नहीं होगा इतने सालों के बाद अभी भी शहर के कई हिस्सों में पाइपलाइन डालना बाकी है उसके बाद इन पाइपलाइन मे आवासीय क्षेत्रों के घरों से पाइप लाइन का जोड़ना और उसके बाद इस पाइप लाइन की टेस्टिंग करना बाकी है जिसमें लगभग 1 वर्ष से अधिक का समय और लगने की संभावना जताई जा रही है, पिछले कई सालों से इस प्रोजेक्ट में शहर की ड्रेनेज व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है वही सड़कों को जगह जगह खोदने की वजह से पूरे शहर का ट्रैफिक भी प्रभावित हुआ है।
उज्जैन शहर के लगभग सभी सार्वजनिक शौचालय बदहाली के शिकार हो रहे हैं अमूमन हर शौचालय में पानी की टंकी ,नल ,पाइप, बेसिन, बिजली के बल्ब ,दरवाजे आदि गायब हो चुके हैं और लगभग सभी शौचालय गंदगी से सराबोर हो रहे हैं जिनकी नियमित साफ-सफाई नगर निगम कर्मचारियों द्वारा नहीं की जाती है,नतीजतन शहर के सभी शौचालयों में एवम आसपास गंदगी व्याप्त है।
कई गंदे नालों के मिलने की वजह से मोक्षदायिनी क्षिप्रा दिन प्रतिदिन मैली होती जा रही है, कई साल एवं करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी शिप्रा नदी का शुद्धिकरण नहीं हो पाया है, शिप्रा नदी में खान नदी के गंदे पानी के साथ-साथ पूरे शहर के करीब 20 से ज्यादा नालें शिप्रा नदी में मिलते हैं जिसकी वजह से शिप्रा नदी का पानी पूरी तरह से दूषित हो चुका है लेकिन इन सबके बीच शासन प्रशासन के नुमाइंदे हजारों करोड़ लगाने के बाद भी बेबस नजर आ रहे हैं।
बहर हाल उज्जैन शहर में उपरोक्त कारणों का स्थाई निदान नहीं होने की वजह से स्वच्छता सर्वेक्षण में पीछड़ता जा रहा है, स्वच्छता सर्वेक्षण में किसी शहर का प्रथम आना वहां के जनप्रतिनिधि, प्रदेश सरकार एवं प्रशासनिक नुमाइंदों के सामूहिक प्रयास का नतीजा होता है और इन सभी प्रयासों में भारी कमी की वजह से उज्जैन शहर लगातार स्वच्छता सर्वेक्षण में पिछड़ता जा रहा है ,जरूरत इस बात की है कि उज्जैन के जनप्रतिनिधि ,प्रदेश सरकार एवं स्थानीय प्रशासन, उज्जैन शहर की इन मुख्य समस्याओं को लेकर एक ठोस नीति का निर्धारण करे ताकि इन समस्याओं का स्थाई निदान किया जा सके,तभी बनेगा उज्जैन नंबर वन।