पत्रकारों की लेखनी को दबाने का प्रयास कर रहे दबंग

लेकिन कलम जब चलती है तब अंजाम तक जरूर पहुंचाती है…..

समाचार पत्र के कलमकार की कलम में बंदूक की गोली से ज्यादा ताकत होती है यह सर्वज्ञात है और सर्वस्वीकार्य भी पत्रकार अपनी जान जोखिम में डालकर भारी दबाव, तनाव के बीच मुद्दों को उठाकर सच को जनता के बीच लाते है और इसके लिये उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़ते है और कितने जोखिम उठाना पड़ते है ये पत्रकार स्वयं ही जानते है। सच को सामने लाने का साहस पत्रकारों में ही होता है लेकिन कई बार उन्हें इसकी बड़ी कीमत तक चुकाना पड़ती है।

आखिर कब बनेगा पत्रकारों की सुरक्षा का कानून

मध्यप्रदेश में काफी समय से पत्रकारों की सुरक्षा के कानून की मांग की जा रही है लेकिन प्रदेश में सरकारें बनी और बदल गई लेकिन पत्रकारों की सुरक्षा को सभी ने नजरअंदाज किया। जबकि यही पत्रकार अपने स्वयं व परिवार के प्राणों व सुरक्षा का परवाह किये बिना समाचार संकलन कर जनता तक सत्य पहुंचाते है जिसकी कीमत कई पत्रकारों को जान गंवाने, हमले का शिकार होने, झूठे मामले में उलझने के रूप में चुकानी पड़ी है।

दबंगों का शिकार हो रहे पत्रकार

लिखने में शर्म महसूस नहीं होती क्योंकि हम पत्रकार भाई अपने कार्य को पूरी क्षमता से करते है लेकिन कुछ दबंग व राजनीतिज्ञ उनकी स्वार्थपूर्ति न होने व उनका सच सामने आने से बौखलाकर हमारी इस लेखनी को दबाने का प्रयास करते है भयभीत करते है लेकिन साच को आंच क्या ? सच को किसी का भय नहीं होता, बुराई कितनी भी बड़ी हो, सच के सामने हारती ही है।

कलम के सामने बुराई बौनी है।

बुराई चाहे कितनी भी ताकत से चलें, लेकिन कलम और कलमकारों के सामने बौनी ही होती है। सच का आईना देखकर बुराई जरूर बौखलाती है और अपने वास्तविक स्वरूप में सामने आती है लेकिन कलमकार की कलम सदैव उन्हें अपनी कलम की ताकत का अहसास कराती है और कराती रहेगी।

लेकिन कलम से भयभीत बुराईयां ये भूल जाती है कि सच्चाई और कलम को जितना दबाने का प्रयास करोगे वो उतना तेजी और ताकत से उठेगी और बुराई को समूल नष्ट कर देंगी। बाकी समझदार को इशारा काफी है न्यायाधीश की एक कलम से दोषी को सजा हो जाती है और संगठन प्रमुख की एक कलम से नेताओं के होते टिकट भी कट जाते है। खैर पुरस्कार या दंड देना ईश्वर के हाथ में है हम तो उसके हाथों की कठपुतली है।

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