भ्रष्टों को लाना महापौर विवशता या पुरानी पल्टन की सफलता
उज्जैन हाल ही में नगर पालिक निगम उज्जैन के महापौर मुकेश टटवाल ने नया निर्णय लेते हुए नगर पालिक निगम उज्जैन के सेवानिवृत्त हो चुके पुराने अधिकारियों, कर्मचारियों के अनुभव का निःशुल्क लाभ लेने के नाम पर उन्हें बैकडोर एन्ट्री दी है। आखिर यह किसी राजनीतिक दबाव में महापौर की भ्रष्टों को लाने की विवशता है या पुरानी भ्रष्ट पल्टन की निगम में दोबारा पॉवरफुल होने की सफलता है।
कहीं सिंहस्थ 2028 का विराट बजट तो नहीं है टारगेट
बता दें कि सिंहस्थ 2016 में शासन द्वारा आवंटित लगभग 4000 करोड़ रुपये के बजट में नगर पालिक निगम उज्जैन को 1000 करोड़ रूपये लगभग मिले थे जिसमें इसी काली पल्टन के दागदारों पर नगर निगम के कार्यों में भ्रष्टाचार के दाग लगे थे। लगता है कि सन्निकट सिंहस्थ 2028 के प्रस्तावित 10 हजार करोड़ रूपये का मेगा बजट इन पुराने दागदारों का टारगेट हो सकता है।
काली पल्टन पहले से ही है दागदार
सूत्रों की मानें तो नगर निगम द्वारा जिन अधिकारियों, कर्मचारियों को मुफ्त कार्य के नाम पर निगम में रखा जा रहा है वे भ्रष्टाचार, अनियमितता की सारी पराकाष्ठाओं को पार कर चुके लगते है उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू लोकायुक्त आदि में प्रकरण, शिकायते दर्ज / लंबित है। तो आखिर क्या मजबूरी या कारण था कि महापौर ने इन सेवानिवृत्त दागदारों को दोबारा भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान रचने की छूट दे दी है। या तो महापौर ने बड़े दबाव में यह निर्णय लिया है या फिर महापौर की घेराबंदी कर रह चापलूस. भ्रष्टमति जन दिग्भ्रिमित कर उनकी छवि को कलंकित कर निगम से भ्रष्टाचार को मिटाने की बजाए बढ़ाना चाहते है।
आखिर किस नियम के तहत ली जाएंगी सेवाएं
म.प्र.नगर पालिका अधिनियम सहित अन्य ऐसा कौन सा एक्ट है जिसके तहत इन सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों, कर्मचारियों की सेवाएं ली जा रही है। न तो वर्तमान में कोई आपदाजन्य स्थिति है और न ही ये अधिकारी ऐसी सेवाओं से जुड़े है तो आखिर महापौर नियमों के परे जाकर एकतरफा निर्णय क्यों ले रहे है ? जबकि महापौर के इस कृत्य का जनता मुखर होकर विरोध कर रही है और महापौर द्वारा 8 माह में किये गये कार्यों से उपजी छवि को यह फैसला कलंकित कर रहा है।
निर्णय पर पुनर्विचार करें महापौर
सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों से निःशुल्क सेवा लेने के निर्णय पर महापौर पुनर्विचार करें और जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों, बुद्धिजीवियों को विश्वास में लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा नगरीय विकास एवं आवास मंत्री का अनुमोदन लेने के उपरांत ही इस दिशा में अंतिम निर्णय लेवें अन्यथा सिंहस्थ की तैयारियों के प्रभावित होने पर महापौर को इसके लिये जिम्मेदार माना जा सकता है और उनके कार्यकाल का पहला वर्ष ही विरोध में बीत सकता है।