उज्जैन। ‘रंगबिरंगी चुनरी, धरती करे शृंगार, ऋतुओं के सरताज ने सजा लिया दरबार।Ó ये पँक्तियाँ विख्यात साहित्यकार डॉक्टर पुष्पा चौरसिया ने सरल काव्यांजलि संस्था द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में सुनाईं। जानकारी देते हुए संस्था सचिव डॉक्टर संजय नागर ने बताया कि सुदामानगर में वसन्त ऋतु के आगमन पर आयोजित इस काव्य एवं साहित्यिक गोष्ठी में सर्वप्रथम सदी की महानतम पार्श्व गायिका लता मंगेशकर के निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
कोरोना काल में लगातार सेवा देने वाले संस्था के सदस्य श्री मुक्तेश मनावत का इस अवसर पर सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम में दिलीप जैन ने ‘रिश्तों के मतलब होते हैं, कुछ रिश्ते मतलब के होते हैं।Ó सन्तोष सुपेकर ने ‘माँ के लड्डूÓ के द्वारा ‘लड्डुओं की एक्सपायरी डेट हो सकती है, माँ के इंतज़ार की नहींÓ, विजयसिंह गहलोत ‘साकित उज्जैनीÓ ने ‘जो दर्द की शिद्दत को दबाए रहे, वो चेहरे पे मुस्कान सजाए रहेÓ डॉक्टर रफीक नागौरी ने ‘बहुत मजबूर हो जाती है तब एहसान लेती है, कोई खुद्दार बेवा कब किसी से दान लेती है। कोमल वाधवानी ‘प्रेरणाÓ ने ‘ऐसा भी होता है इतने लोगों में आदमी अकेला रह जाता हैÓ, कैलाश शर्मा ‘अकेलाÓ ने ‘आशिकों के दिल भी अजीब होते हैं, धड़कते हैं यहाँ और उनके करीब होते हैंÓ आशीष श्रीवास्तव ‘अश्कÓ ने ‘सांस भी लेना मुश्किल मुझको दिल भारी हो जाता है, तन्हाई में मुझको जब मुझको माझी का दौर याद आता है।Ó प्रभाकर शर्मा ने ‘अनादि वसन्तÓ रचना सुनाई।
नरेंद्र शर्मा ‘चमनÓ, रामचन्द्र धर्मदासानी, डॉक्टर मोहन बैरागी, नारायणदास मन्घवानी, शिवदानसिंह सांवरे, धनसिंह चौहान ने भी कविताएँ सुनाईं।
मुख्य अतिथि श्री शिवेंद्र तिवारी ने सामाजिक और साहित्यिक कार्यों में अग्रणी रहने के लिए संस्था की प्रशंसा की। अतिथि श्री आर.पी. गुप्ता (पूर्व अपर कलेक्टर) ने ‘नृप वसन्त के आंगन में बिखरी किंशुक सुमनों की शुचि माला, गिरिजापति को हृदय बसाए गूंथ रही ज्यों हिमगिरिबालाÓ कविता सुनाई।
कार्यक्रम अध्यक्ष श्रीमती आशागंगा शिरढोणकर ने लघुकथा ‘बार-बारÓ सुनाते हुए संस्था की सक्रियता को रेखांकित किया।
प्रारम्भ में अतिथि स्वागत कमलेश कुशवाह, कैलाश जाट, आशुतोष दुबे ने किया। संचालन ओज के वरिष्ठ कवि श्री नृसिंह इनानी ने और आभार संस्था अध्यक्ष सन्तोष सुपेकर ने व्यक्त किया।