ज्योतिषाचार्या एवं वास्तु विशेषज्ञ
विवेका शर्मा
1 पृथ्वीः–
पृथ्वी तत्त्व की तन्मात्रा गंध होने से पृथ्वी का गुण गंध है। जहां गंध होगी वहां पृथ्वी तत्त्व विराजमान होगा। भूखण्ड का चयन दिशा, पृष्ठ व स्तर के अनुसार, जैसाकि पूर्व में निर्देश दिए गए हैं, चयन करना। घर में मंदिरा- मांसाहार का प्रयोग नहीं करना। घर में स्वच्छ वातावरण रखने से पृथ्वी तत्त्व अनुकूल हो जाता है।
2 जलः-
जल की तन्मात्रा रस है जिससे जल का गुण रस है। भूखण्ड में जल कूप, नलकूप, अण्डर ग्राउण्ड वाटर टैंक, ओवर हैड टैंक को उचित स्थान देना। घर में स्वच्छ जल, जल वितरण व्यवस्था, जल निकासी व्यवस्था, स्नानागार व शौचालय की दिशा अनुसार उचित जगह बनाकर जल तत्त्व को अनुकूल बनाया जा सकता है।
3 अग्निः-
जल की तन्मात्रा रूप है जिससे अग्नि का गुण रूप है। जहां रूप है वहां अग्नि है। भवन का सम्मुख दृश्य (Elevation) सुन्दर बनाएं। भोजन शाला को आग्नेय में स्थान दें, घर में गर्म पानी हेतु गीजर, हीटर व चूल्हे को सही स्थान देना, घर में प्राकृतिक प्रकाश के प्रचुर आगमन की व्यवस्था करके अग्नि तत्त्व को अनुकूल बनाया जा सकता है।
4 वायुः –
वायु की तन्मात्रा स्पर्श है जिससे वायु का गुण स्पर्श है। अर्थात् संवेदनशीलता। भवन का आकल्पन “विश्ववारयाः” करके अर्थात् भवन ऐसा हो जो सभी ओर की वायु को ग्रहण करे। इस हेतु सिंह द्वार, प्रवेश द्वार, आलिन्द व रोशनदान को उचित स्थान में लगाकर वायु तत्त्व को अनुकूल बनाया जा सकता हैं ।
5 आकाशः-
आकाश की तन्मात्रा शब्द है जिससे आकाश का गुण शब्द है। घर में परदों पर मधुर ध्वनि के लिए छोटी-छोटी घंटियां लगाएं। कॉल बैल (Call Bell) सुमधुर ध्वनि की लगावें। कर्कश ध्वनि की कॉल बैल न लगाएं। घर की शांति शोर द्वारा भंग न करें। आकाश से अभिप्राय अवकाश भी है अर्थात् भवन की प्लानिंग में चारों ओर खुला स्थान छोड़े।