यक्ष प्रश्न : सरकारी मुलाज़िम है या भू माफिया

विकास प्राधिकरण बना विनाश प्राधिकरण किसानों की निजी भूमि को विकास प्राधिकरण ने वाले-बाले बेचा बिना जांच व अधूरे दस्तावेजों से निर्माण अनुज्ञा जारी कर अन्नदाताओं की भूमि हड़पने में नगर निगम भी बना भागीदार

अवंतिका के युवराज (उज्जैन संवाददाता)। उज्जैन में यक्ष प्रश्न उत्पन्न हो गया है कि उज्जैन विकास प्राधिकरण, नगर पालिक निगम उज्जैन के अधिकारी सरकारी मुजाज़िम है या भू माफियाओं का पर्याय बनने की कवायद कर रहे है। मामला है उज्जैन शहर के वार्ड क्र.48 के अन्तर्गत स्थित ग्राम गोयलाखुर्द स्थित भूमि सर्वे कमांक 10/1/2 रकबा 0.421 हेक्टर की अफरा तफरी करने व फर्जी आधारों पर भवन निर्माण अनुज्ञा शासकीय निकायों द्वारा जारी करने का है।

ग्राम गोयला खुर्द स्थित भूमि सर्वे क्र. 10/1/2 पर अद्यतन बालाराम, जगदीश, लीलाबाई आदि का भू अभिलेख में नाम बतौर स्वामी दर्ज हैं। इसके बावजूद किसानों की इस भूमि पर नगर एवं ग्राम निवेश विभाग से फर्जी अभिन्यास अनुमोदित करवाकर प्राधिकरण ने इस भूमि पर प्राधिकरण का स्वामित्व न होने के बावजूद भूमि पर भूखंड विकसित कर “बसंत विहार कालोनी के नाम से भूखंड क्र. ए-13/1 एच.आई.जी. से लेकर ए-13/12 एच. आई.जी. व अन्य भूखंड बेच डाले है व स्वामी न होने के बावजूद प्राधिकरण ने उक्त भूखंड लोगों को विक्रय कर सीधे तौर पर छल कारित किया है।

आश्चर्य का विषय है कि उक्त भूमि पर किसी भी संस्था या बिल्डर का नक्शा स्वीकृत नहीं है। फिर आखिर रजिस्ट्रीयां कैसे हो गई ?

प्राधिकरण द्वारा भूमि मालिक न होने के बावजूद जमीनों की अफरा तफरी करने के मामले में मुख्य कार्यपालन अधिकारी, इंजीनियर उविप्रा भू अर्जन अधिकारी, पटवारी आदि प्रमुख रूप से दोषी प्रतीत होते है।

यह अनियमितता का सिलसिला यहीं नहीं रूका है। इसको आगे बढ़ाने का खेल नगर निगम के जिम्मेदारों ने किया है। अपूर्ण अधूरे व कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर झोन क्र.6 के जिम्मेदार अधिकारियों ने इन भूखंडों के स्वामित्व सहित दस्तावेजों,मौके की पुष्टि किये बिना ही भवन निर्माण अनुज्ञाएं जारी कर दी। गौरतलब है कि कुछ माह पूर्व ही गुंडा अभियान के तहत दबंगों के दबाव में एक भवन को रिक्त कराने का ठेका लेकर निर्दोषों के मकान तोड़े थे। इस मामले में झोन क्र.6 के तत्कालीन नगर निवेश के वरिष्ठ अधिकारी व कुछ ही समय बाद एक कर्मचारी पर गाज गिरी थी।

इन्हीं अधिकारी, कर्मचारी महाशय के जोरदार गठबंधन के परिणामस्वरूप ही अब तक झोन क्र.6 के इन विधि विरुद्ध अनुमति प्राप्त भवनों कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। जबकि इस संबंध में म.प्र. कांग्रेस कमेटी भोपाल के प्रदेश महामंत्री भरत पोरवाल पुलिस अधीक्षक उज्जैन, आयुक्त नगर पालिक निगम उज्जैन को दि. 24.09.2021 को लिखित शिकायत मय साक्ष्य की जा चुकी है परंतु जिम्मेदारों पर कार्यवाही नहीं हुई।

औपचारिकता की पराकाष्ठा देखिये कि आयुक्त नपानि उज्जैन द्वारा पत्र क्र. 1252 / सा.प्र.वि. दि. 30.11.21, अपर आयुक्त नपानि उज्जैन द्वारा पत्र क्र.1152 दि.16.11.2021, नगर निवेशक उनपानि द्वारा पत्र क्र. 1133 दि.29. 10.2021, व पत्र क्र. 1100 दि.12.10.2021 मुख्य कार्यपालन अधिकारी उज्जैन को दिया जा चुका है व “विकास प्राधिकरण उज्जैन के द्वारा विकसित बसंत विहार योजना के सेक्टर ए के भूखंड क्रमांक 1 से 18 तक के भू स्वामित्व की स्थिति स्पष्ट करने बाबत” लेख भी किया गया है परंतु आश्चर्य का विषय हैं कि निगम के सभी पत्रों को प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी घोलकर पी गये है जब शासन की 1 निकाय दूसरी निकाय की सुनवाई नहीं कर रही है तो आम जनता की क्या दुर्गति होती होगी यह अंदाजा लगाया जा सकता है।

कुल मिलाकर फर्जी तरीके से हुए समस्त रजिस्ट्रीयों को निरस्त किया जाना चाहिए, इस आधार पर जारी समस्त भवन निर्माण अनुज्ञा निरस्त कर मकान तोड़े जाने चाहिए।

विकास प्राधिकरण, अब विनाश प्राधिकरण बन बैठा है। यह भी विचारणीय है कि उक्त भूमि के संबंध में मा.म.प्र. उच्च न्यायालय में प्रकरण प्रचलित रहा है इसके बावजूद फर्जी तरीके से नगर एवं ग्राम निवेश विभाग को भ्रमित कर अभिन्यास की स्वीकृति कैसे ली गई ? कुल मिलाकर पूरे कुएं में भांग घुली हुई है और इसमें बड़ा खेला हुआ है।

एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा करते है और दूसरी ओर मुख्यमंत्री के मातहत अधिकारी ही मुख्यमंत्री की घोषणा को पलीता लगा रहे है और किसानों की जमीन हड़पने, फर्जी रजिस्ट्रीयां करने व बिना जांच एवं अधूरे दस्तावेजों से भवन निर्माण अनुज्ञा जारी कर जमीन हड़पने की साजिश में अब सरकारी मुलाज़िम खुद ही समानांतर रूप से भू माफिया बनने के सफल प्रयास कर रहे है।

इस विषय में संवाददाता ने आयुक्त, उपायुक्त, झोनल अधिकारी, अधीक्षण यंत्री से चर्चा की परंतु कोई संतोषजनक जवाब देने को तैयार नही है सिर्फ विषय को टालना, इस मामले में गंभीर राजनीतिक हस्तक्षेप और निजी स्वार्थपूर्ति की शंका पुख्ता कर रही है।

अब देखना ये है कि आईपीएस रह चुके आईएएस अफसर निगम आयुक्त रोशन सिंह अपनी सख्ती और निर्विवाद कार्यप्रणाली का जलवा दिखा पाएंगे, भवन निर्माण अनुमतियां निरस्त कर मकान तोड़ पाएंगे या दबंगों के दबाव में बेबस होकर आयुक्त मौन और अकर्मण्य बने रहेंगे ।

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